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Weimar Republic जर्मनी की लोकतांत्रिक सरकार

Weimar Republic जिसे गणतंत्र के इतिहासकारों द्वारा जर्मनी की प्रतिनिधित्वपूर्ण लोकतांत्रिक संसदीय सरकार के रूप में जाना जाता है, 1919 से 1933 तक जर्मनी का शासन किया। Weimar Republic उस स्थान से प्राप्त हुआ, जहाँ संविधानिक सदन का गठन किया गया था और जहाँ पहली बार जर्मन संविधान ड्राफ्ट किया गया था। जर्मनी का आधिकारिक नाम उस समय “जर्मन राइख” था।

नवंबर 1918 में पहले विश्वयुद्ध के बाद, Weimar Republic य सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें एक नए संविधान की तैयारी की गई और उसे 11 अगस्त 1919 को मंजूरी दी गई। यह अवधि जर्मन क्रांति की शुरुआत थी। यदि बात की जाए 1930 के दशक तक, तो इस दिलचस्प लोकतंत्र का समापन हो चुका था, जिसके परिणामस्वरूप 1933 में एडोल्फ हिटलर और उसके नाजी पार्टी ने सत्ता पकड़ी।

नाजी पार्टी ने 1933 से 1945 तक शासन किया, जिसके परिणामस्वरूप संविधान तो अधिक नहीं रखा गया, हालांकि इसे आधिकारिक रूप से कभी निरस्त नहीं किया गया, लेकिन नाजी पार्टी ने अपने शासन की शुरुआत में कई उसके प्रावधानों को अनगिनत तरीकों से दरकिनार किया था। इसलिए 1933 को Weimar Republic के रूप में माना जाता है और हिटलर की तीसरी राइख के आरंभ की शुरुआत।

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सरकार की कमजोरी: Weimar Republic मान्य रूप से कमजोर थी और उसमें देश के विभिन्न दलों को नियंत्रित करने की शक्ति और अधिकार की कमी थी। राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर सहमति नहीं पा सकती थीं, और राष्ट्रपति को निर्णायक कदम उठाने के लिए सीमित अधिकार थे।

सामाजिक अशांति: जर्मनी में सामाजिक अशांति बढ़ी थी, जिसमें विभिन्न समूह सरकार, आर्थिक स्थितियों, और अन्य मुद्दों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। कई हड़तालें, प्रदर्शन, और बगावतें हुईं, जो देश को और भी अस्थिर बना दिया।

अंतरराष्ट्रीय अलगाव: वर्साय की संधि ने जर्मनी की सैन्य क्षमताओं पर सख्त प्रतिबंध लगाए और देश को अपने विदेशी शासन क्षेत्रों को त्यागने के लिए मजबूर किया। वाइमर गणराज्य को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग रहना पड़ा और उसे अन्य देशों के साथ मजबूत कूटनीतिक संबंध स्थापित करने में असमर्थ बना दिया।

समग्र रूप से, वाइमर गणराज्य को सरकार को स्थिरता और प्राधिकृति स्थापित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन चुनौतियों ने आखिरकार नाजी पार्टी के उत्थान और जर्मनी में लोकतंत्र के पतन का मार्ग खोला।

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1. आर्थिक अस्थिरता:

    – अति मुद्रास्फीति: 1920 के दशक की शुरुआत में, जर्मनी ने अति मुद्रास्फीति का अनुभव किया, जिससे जर्मन चिह्न के मूल्य में गिरावट आई। जर्मन राज्य आर्थिक रूप से कमजोर हो गया था क्योंकि वह युद्ध में  हार गया था जब मीरुद्ध में डूबे हुए रनों के कारण जिसका भुगतान सोने में किया जाना था वह नहीं दे पाया था जिस कारण जर्मनी का निशान का मूल्य गिर गया और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बहुत महंगी होने लगी 

2. राजनीतिक विखंडन:

    – वीमर गठबंधन: ऐतिहासिक रूप से, वीमर गणराज्य रैहस्टाग में कई पार्टियों के साथ एक खंडित राजनीतिक परिदृश्य से त्रस्त था। वाइमर गणराज्य का विकास तथा उसे सुरक्षा के रास्ते पर लाने के लिए एक नए जनतांत्रिक संविधान का निर्माण किया गया राष्ट्रीय सभा द्वारा किंतु या अपने उद्देश्य में सफल रहा अनुच्छेद 48 राजनीतिक संकट पैदा हुआ जिसमें तानाशाही शासन का रास्ता खोल दिया संविधान में बहुत सारी कमजोरियां थी जिस कारण राजनीतिक विखंडन हुआ।

3. उग्रवादी आंदोलन:

    – चरमपंथी पार्टियों का उदय: 1920 के दशक में, अति-दक्षिणपंथी (उदाहरण के लिए, नाजी पार्टी) और सुदूर-वामपंथी (उदाहरण के लिए, कम्युनिस्ट पार्टी) दोनों तरह की चरमपंथी पार्टियों ने लोकप्रियता हासिल की। 

4. वर्साय की संधि:

    – संधि की विरासत: वर्साय की संधि ने जर्मनी पर भारी क्षतिपूर्ति और क्षेत्रीय नुकसान लगाया, जिससे नाराजगी और आर्थिक कठिनाइयां पैदा हुईं।संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश 10% आबादी 13% भूभाग 75% लो भंडार 26% कोयला भंडार  फ्रांस पोलैंड डेनमार्क लिथुआनिया के हवाले करने पड़े थे.

मित्र राष्ट्रों ने सारी सेना  भंगकर दी थी और युद्ध के   कारण  हुई सारी  तबाही के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहरा कर उस पर 6 अरब पौंड का जुर्माना लगा दिया था राई नेट पर भी मित्र राष्ट्रों ने कब्जा कर लिया था जहां पर खनिज संसाधनों का भंडार था

5. सामाजिक अशांति:

    – आर्थिक असमानता: वाइमर युग में उच्च स्तर की आर्थिक असमानता और बेरोजगारी सामाजिक अशांति के स्रोत थे। ।

6. विदेशी संबंध:

    – राजनयिक अलगाव: 1920 के दशक में, जर्मनी को अपने युद्धकालीन कार्यों के कारण राजनयिक अलगाव का सामना करना पड़ा। 

7. कमजोर सरकारी संस्थाएँ:

नाजुक लोकतंत्र: वाइमर गणराज्य ने एक स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए संघर्ष किया।

8. राष्ट्रवाद और लोकलुभावनवाद:

राष्ट्रवादी आंदोलन: ऐतिहासिक रूप से, राष्ट्रवादी भावनाओं ने राजनीतिक अस्थिरता में योगदान दिया।

दुष्प्रचार और प्रौद्योगिकी: आधुनिक युग में, तकनीकी प्रगति ने दुष्प्रचार, साइबर खतरों और जनमत के हेरफेर से संबंधित नई चुनौतियाँ पेश की हैं, जो वाइमर गणराज्य की स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।

रोजगार की समस्या: मधु या तो बेरोजगार होते जा रहे थे उनका वेतन काफी गिर चुका था जिससे बेरोजगारी की संख्या सात लाख तक जा पहुंची थी

 अर्थव्यवस्था में मंदी:

 अमेरिका अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण दुनिया भर में महसूस किया गया हो तो सबसे बुरा प्रभाव  जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ा।

 आर्थिक मंदी इस दौर में आर्थिक मंदी की शुरुआत हुई या फैक्ट्री बंद हो गई थी निर्यात गिरता जा रहा था किसानों की हालत खराब होती जा रही थी सट्टेबाज बाजार से पैसा खींचते जा रहे थे।

 कीमतों में गिरावट

  कीमतों में गिरावट के कारण लोग अपने शेयर बेचे जा रहे थे  क्योंकि किंतु की गिरावट लोगों को होने लगी थी इसलिए लोग अपनी शेयर  बेचने लगे।24 अक्टूबर को केवल 1 दिन में डेढ़ करोड़ शेयर भेज दिए गए थे

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1919 में जब जर्मनी में गणतंत्र की स्थापना हुई, तो यह एक रोचक और सोचने वाला पल था। लेकिन केवल 13 वर्षों के बाद, हिटलर के अधिनायकवादी शक्ति में आ गए और इस नवस्थापित गणतंत्र को अल्पकालिक बना दिया। इस परिपेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि ऐसा कैसे हुआ? गणराज्य के अंत के पीछे के कारणों को गणराज्य की समस्याओं के साथ जोड़कर समझना चाहिए।

नवस्थापित गणराज्य के अंत के पीछे कई कारण थे, जो एक संयुक्त पूर्ववर्ती की तरह मिलकर कार्य किए और इसके पतन का मार्ग बना:

  1. आर्थिक संकट: पहले सुखकरण और फिर गहरी मंदी ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को कमजोर किया। लोगों की आर्थिक समस्याएँ बढ़ गईं, और इसने सामाजिक आत्मघातीता को बढ़ावा दिया।
  2. विपर्यासी शासकता: वीरता के शौर्य और बाग़दाद की अप्राप्य विस्तारण से जुड़े अतिरिक्त कारणों ने न्यायपाल का आलंब न रहता हो, जिसके कारण लोग राजशाही सरकार के प्रति विश्वास खो दिया।
  3. सामाजिक द्वंद्व: सामाजिक द्वंद्व भी एक महत्वपूर्ण कारक था, जिसमें विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच का संघर्ष था। यह द्वंद्व राजनीतिक स्थानों की स्थापना में समस्या डाला और राजकीय अकेलाप को बढ़ावा दिया।
  4. हिटलर के आगमन: हिटलर जैसे अधिनायकवादी नेताओं के आगमन ने गणराज्य को अधिनायकवाद की दिशा में ले जाया। उनकी प्रतिष्ठित सरकार द्वारा वायु किस्म से गुज़रने के बाद, गणराज्य की अल्पकालिक उपेक्षा हुई।

इन कारणों के मिलने के बाद, जर्मन लोगों ने गणराज्य की समस्याओं के साथ निरंतर बढ़ती हुई आत्मघातीता और निराशा के बीच नवाचार देने का सामर्थ्य खो दिया और यह नवस्थापित गणराज्य को सिर्फ 13 साल के बाद हिटलर के नामकरण का निमंत्रण देने में सहमत हो गया।

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गणराज्य की विदेश नीति: वर्साय की संधि के बाद की जर्मनी की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति

वर्साय की संधि के परिणामस्वरूप, 1919 में सम्पन्न हुए पहले विश्वयुद्ध के बाद, जर्मनी के साथ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का दृष्टिकोण बिल्कुल अलग हो गया। जर्मनी को दुनिया भर के देश शंका और अविश्वास के साथ देखने लगे।

इसके अलावा, फ्रांस और बेल्जियम की सेनाएं जर्मनी के आदिकृत औद्योगिक क्षेत्र ‘रूर’ पर युद्ध क्षतिपूर्ति वसूलने के बहाने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।

इस प्रकार, जर्मनी की अयोग्य विदेश नीति के कारण, वह अपने आपको अंतरराष्ट्रीय मान्यता की दिशा में पहुंचने में विफल रही और गणराज्य के प्रति जिम्मेदार माना गया।

इसलिए, जब हिटलर ने जर्मनी के विस्तार और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बारे में बात की, तो जर्मन जनता ने इसे खूबसूरती से स्वागत किया। यह एक तरह से गणराज्य की अधिजिम्मेदारी का परिणाम था, जिसे अवश्यकता थी अपने अंतरराष्ट्रीय स्थिति को सुधारने के लिए।

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बहुदलीय व्यवस्था, जिसे मल्टीपार्टी सिस्टम भी कहा जाता है, एक प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें दो या दो से अधिक पार्टियां और संगठन राजनीतिक शक्ति की प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था वोटर्स को विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों के साथ चुनने का अवसर प्रदान करती है और यह राजनीतिक प्रक्रिया को अधिक जिम्मेदारीपूर्ण और प्रशासनिक बनाती है।

बहुदलीय व्यवस्था एक समर्थनीय विचार और विचारशीलता का प्रतीक हो सकती है, लेकिन यह भी राजनीतिक स्थिरता और गवर्नेंस के लिए चुनौतियों का सामना करती है।

इसी रूप में, जर्मनी में बहुदलीय व्यवस्था की असफलता दर्ज की जा सकती है। वहां कभी-कभी पार्टियों के बीच महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति नहीं होने के कारण, सरकारें स्थिर नहीं रह पाई और संगठनिक दुर्बलता का सामना करना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप, कुछ अव्यवस्था और सरकारी असमर्थन की स्थिति उत्पन्न हुई, जिसका परिणाम हिटलर की अधिनायकता में वृद्धि और जर्मनी के दिक्ताटोरी रूप के आगमन का हो सकता है।

Weimar republic की विदेशिक नीति: वर्साय की संधि के बाद की जर्मनी की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति

विश्वयुद्ध के पश्चात्, 1919 में सम्पन्न हुई वर्साय की संधि ने एक नई अंतर्राष्ट्रीय नायकता की शुरुआत की, जिसने जर्मनी के साथ अलगाव की ओर सिर किया। जर्मनी को विभिन्न देशों द्वारा शंका और अविश्वास की दृष्टि से देखा जाने लगा।

फिर भी, इससे अधिक दुखद था फ्रांस और बेल्जियम के सैन्य बलों द्वारा जर्मनी के औद्योगिक क्षेत्र ‘रूर’ पर युद्ध क्षतिपूर्ति वसूलने का कामकाज जो बढ़ गया। इसके परिणामस्वरूप, जर्मनी की अकुशल विदेश नीति ने इसे एक अपमासन के रूप में प्रकट होते देखा, और गणराज्य को उत्तरदायी माना गया।

इस प्रकार, जब अडॉल्फ हिटलर ने जर्मनी के विस्तार और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाने के बारे में बात की, तो जर्मन जनता ने इसे खूबसूरती से स्वागत किया। इसने वर्साय की संधि के परिणामों को प्रकट करके दिखाया कि गणराज्य की विदेश नीति कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है और कैसे यह एक देश की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को पूरी तरह से परिवर्तित कर सकती है।

Weimar republic की अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर: गणराज्य की स्थापना के दौरान

गणराज्य की स्थापना उन अद्भुत समयों में हुई थी, जब जर्मनी ने सैनिक पराजय का सामना किया था और युद्ध के परिणामस्वरूप उसे वर्साय की संधि के कठोर और अपमानजनक शर्तों पर हस्ताक्षर करना पड़ा।

इस समय के अंतर्निहित दुखों में अल्सास-लॉरेन क्षेत्र को फ्रांस को सौंपना पड़ा, सेना को कम कर दिया गया, और एक विशाल युद्ध हर्जाने की व्यापक राशि का तय किया गया था। इस दौरान, यह संविधानिक प्रक्रिया ने जर्मनी के अपमान का एक प्रतीक बना दिया था, जो लोगों के मन में सामर्थ्य और आत्म-सम्मान की भावना को भिगो दिया था।

वर्साय संधि के शर्तों का आलोचनात्मक असर बहुत देर तक बना रहा, और यह जर्मनी में गणराज्य की स्थापना के दौरान भूमिका निभाई।

Describe the problems faced by the Weimar Republic विशेषताएँ

नवीन संविधान, जिसे वाइमर संविधान के रूप में भी जाना जाता है, १९१९ में जर्मनी में प्रमुख राजनैतिक परिवर्तन का प्रतीक था। इस संविधान ने कई महत्वपूर्ण विशेषताओं को अपने चरम सिद्धांतों में शामिल किया:

१८ संघीय राज्यों का गठन: नवीन संविधान ने जर्मनी को १८ संघीय राज्यों के संघ के रूप में व्यवस्थित किया। इससे एक गणराज्य की स्थापना हुई, जिसमें राज्यों को आपसी सहयोग करने का अवसर मिला और एक मिलकर शासन की नींव रखने का मौका मिला।

नागरिकों के मताधिकार: नवीन संविधान ने जर्मन नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया, जिसका अर्थ था कि यह समर्थन दिया गया कि राजनीतिक निर्णयों को जनता के आपसी चयन द्वारा लिया जाएगा।

राष्ट्रपति का महत्व: इस संविधान ने जर्मनी के राष्ट्रपति को महत्वपूर्ण भूमिका दी, जिसमें उन्हें सरकार की संचालन की जिम्मेदारी और आपातकालीन स्थितियों के लिए अधिकार प्रदान किया गया।

संसद की व्यवस्था: संविधान ने जर्मनी की संसद को दो सदनों में विभाजित किया – प्रथम, लोकसभा (निम्नसदन) और दूसरा, राज्य परिषद् (राज्यसभा)। इससे संविधान के माध्यम से लोगों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था हुई, जो एक लोकतंत्र में महत्वपूर्ण होता है।

राष्ट्रपति की मंत्रिपरिषद्: संविधान ने राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद् की स्थापना की, जिसमें मंत्रियों का समूह होता था जो उनके साथ काम करता था।

धार्मिक और भाषण की स्वतंत्रता: नवीन संविधान ने धार्मिक और भाषण की स्वतंत्रता को भी महत्वपूर्ण माना और लोगों को इन स्वतंत्रताओं का उपयोग करने की अनुमति दी।

 

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